एक समुदाय जिसका निर्वाह प्रकृति के संरक्षण पर निर्भर करता है, विशनोई समाज के लोगों ने बार-बार साबित किया है कि वे पर्यावरण की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। भले ही इसका मतलब है कि अपने प्राणों का बलिदान देना। अमृता देवी विशनोई से बेहतर कोई उदाहरण नहीं है। प्रकृति का बचाव करने के लिए, 1730 में 300 से अधिक लोगों ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी। उस दिन मरने वालों में उनकी तीन बेटियाँ भी शामिल थीं। इस बलिदान ने चिपको आन्दोलन की नीव रखी !!
रेगिस्तान में 27,000 पेड़ लगाने वाले 75 वर्षीय राणाराम विशनोई जो जोधपुर से करीब 100 किमी दूर मरुस्थलीय जमीन पर बसे गांव ऐकलखोरी में रहते हैं ।
पर्यावरण से प्यार करने वाले कई लोग आपने देखे होंगे। कुछ अपने आसपास हरियाली, साफ-सफाई से पर्यावरण को बेहतर बनाते हैं तो कुछ लोग कभी-कभी इस प्यार की सारी सीमाएं पार कर जाते हैं।
जोधपुर के राणाराम विशनोई ऐसे ही लोगों में से एक हैं। 75 साल की उम्र में भी पर्यावरण के प्रति उनका जो प्रेम और लगन है, वह किसी में भी उत्साह भर दे। उनकी यह कहानी भारतीय वन सेवा के अधिकारी प्रवीण कासवान ने शेयर की। प्रवीण ने लिखा, ‘मिलिए राणाराम बिश्नोई से, जो 75 साल की उम्र में भी एक खास मिशन पर हैं। वह पिछले 50 सालों से रेत के टीलों पर हरियाली ला रहे हैं और अब तक करीब 27 हजार पेड़ लगा चुके हैं। वह ना सिर्फ पेड़ लगाते हैं, बल्कि उन्हें पानी भी देते हैं और उनकी देखभाल भी करते हैं।’
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