शहर से लगभग 10 किमी दूर कायलाना झील के ऊपर की पहाडियों पर स्थित एक प्राचीन गुफा और मंदिर, जिसे साधु-संतो की तपोस्थली कहा जाता है और यह भी कहा जाता है कि “भीमभड़क” नाम से प्रशिद्ध यह गुफा अजंता और एलोरा की गुफाओं से भी प्राचीन है.
भीमभड़क में करीब 8 हजार साल पुराने शैलचित्रों के साथ चर्ट तथा अगेट से बने ब्लेड व बाणों के नुकीले भाग मिले. अतः इसकी प्राचीनता का अनुमान हम इन मिलने वाले अवशेषों से ही लगा सकते हैं.
मान्यता के अनुसार महाभारत काल में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के पांच दिन इसी गुफा में बिताये थे. गुफा को छिपाने के लिए भीमसेन ने एक विशाल चट्टान को इसके ऊपर रख दिया था, जो आज भी उसी अधर स्थिति में है. भीमसेन ने गुफा के भीतर माता वैष्णवी की प्रतिमा स्थापित की थी तथा 5 दिन इस गुफा में रहकर पांडवों ने यहाँ तप-साधना की थी.
जोधपुर की स्थापना के बाद इस गुफा को राजपरिवार ने अपने संरक्षण में ले लिया. महाराजा तख़्तसिंह जी ने अपने समय में इसमें कुछ निर्माण कार्य करवाये. इस गुफा में 3200 किलो का एक विशाल शिवलिंग है. पिछले कुछ सालों से तपस्या करने वाले अनुयायी यहाँ रहते है और देख-रेख का कार्य भी वे ही करते हैं. लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि कुछ नवीन निर्माण कार्यों की वजह से इसकी प्राचीनता पर बुरा असर पड़ रहा है. वर्तमान महाराजा गजसिंह जी इस स्थान को संरक्षित करके, इसे राष्ट्रीय स्मारक बनाकर पर्यटकों के लिए खोलना चाहते हैं.
वर्तमान में भीमभड़क के आस पास का क्षेत्र सेना के अधीन है और यहाँ पर रेडार लगा है. इसलिए वहां जाने के लिए सुरक्षा की दृष्टि से अपना पहचान पत्र दिखाना होता है और रजिस्टर में नाम-पता लिख कर पूरी जाँच-पड़ताल के बाद ही आगे जाने दिया जाता है.
ऐसे प्राचीन स्मारकों का जोधपुर में होना एक गर्व की बात है. पौराणिक तथ्यों की जानकारी पाने का एक जरिया होती है ये प्राचीन धरोहरें, जिनका सरक्षण करना बहुत जरुरी है अन्यथा हम अपनी प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और सत्यता को खो सकते है.
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