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History of Achalnath Mandir Jodhpur – 17 साधु-महात्माओं का समाधी-स्थल और तपोभूमि ‘श्री अचलनाथ महादेव मंदिर’ | क्या है मंदिर का इतिहास ?

History of Achalnath Mandir Jodhpur – 17 साधु-महात्माओं का समाधी-स्थल और तपोभूमि ‘श्री अचलनाथ महादेव मंदिर’ | क्या है मंदिर का इतिहास ?
Saurabh Soni

History of Achalnath Mandir – क्या आप जानते हैं शहर में एक मंदिर ऐसा भी है जो अन्य प्राचीन मंदिरों में सबसे विशिष्ट स्थान रखता है. जो शहर के लोगों की आस्था और श्रद्धा का एक पुरातन प्रतीक है. यूँ तो मारवाड़ के कई शासकों और उनकी रानियों द्वारा समय-समय पर कई मंदिरों, भवनों, बावड़ियों, उद्यानों आदि का निर्माण करवाया गया था परन्तु इस मंदिर का एक विशेष महत्त्व है. कहते हैं जब महाराजा और साधू-महंतों के कठोर प्रयास भी इस मंदिर के शिवलिंग को चलायमान नहीं कर पाए तो उनका नाम पड़ गया अचलेश्वर महादेव या अचलनाथ महादेव.

500 वर्ष पूर्व, तत्कालीन महाराजा राव गांगा और महारानी नानकदेवी के कोई संतान नहीं थी. तब उन्होंने वर्तमान कटला बाज़ार में स्थित स्वयंप्रकट शिवलिंग के पास संतान-प्राप्ति की मनोकामना से एक बावड़ी का निर्माण करवाया था जो आज गंगा बावड़ी के नाम से जानी जाती है. निर्माण के कुछ समय बाद ही दोनों की मनोकामना पूर्ण हो गयी. उस समय शिवलिंग के मंदिर-रहित था अतः महारानी नानकदेवी ने यहाँ मंदिर का निर्माण करवाने का निर्णय किया. छित्तर के पत्थरों से भव्य मंदिर का निर्माण हुआ. उस समय शिवलिंग नीचे स्थल पर विराजमान था अतः उन्हें ऊंचे स्थल पर स्थानांतरित करने का विचार किया गया. परन्तु कई प्रयासों के बाद भी शिवलिंग को हिलाया नहीं जा सका. तब महादेव की इच्छा मानकर उसी स्थान पर शिवालय बनवाया गया. तब से यह अचलेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया.

मंदिर में कुल 17 नागा साधुओं-महंतों की समाधियाँ बनी हुई है, इनमें से 7 जीवित समाधियाँ है. इनके बारे में प्रचलित है की ये बहुत ही आध्यात्मिक और महात्मा हुआ करते थे. छठे महंत चैनपुरी, महाराजा राव गांगा के समकालीन थे. अंतर्दृष्टि से उन्हें पता चला की महाराजा की आयु मात्र 20 वर्ष की है तब उन्होंने अपने दो अन्य महंत मित्रों के साथ अपने तपोबल से अपनी आयु में से 20-20 साल निकालकर महाराजा की आयु में सम्मिलित कर दिए. इससे महाराजा महंत के कृतज्ञ हुए और उन्हें साधुवाद दिया और मंदिर के रख-रखाव की जिम्मेदारी महंतों को सौंप दी.

सन् 1977 में नेपाली बाबा ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और प्राचीन पीले शिवलिंग के पास एक और शिवलिंग की स्थापना की जो उन्होंने नर्मदा से लाया गया था जिसे नर्मदेश्वर शिवलिंग कहा जाता है. साथ ही मंदिर में राम लक्ष्मण सीता, हनुमान, माँ पार्वती, गजानन आदि की सुन्दर और आकर्षक मूर्तियाँ स्थापित की गयी. मंदिर में स्थित समाधियों के पास ही नेपाली बाबा की एक जीवंत प्रतीत होने वाली प्रतिमा विराजमान है. मंदिर के 52 फुट ऊंचे शिखर पर 65 किलो का कलश स्थापित है जिस पर करीब 17 तोला सोने की परत चढ़ी हुई है. वर्तमान में मंदिर की आय भक्तों द्वारा दिए दान और मंदिर परिसर के बाहर स्थित 40 दुकानों के किराये से प्राप्त होती है. समय-समय पर मंदिर में पुनःनिर्माण और नव-निर्माण कार्य भी होते रहते है.

शहर के बीच में स्थित यह मंदिर त्यौहारों और उत्सवों में तो चहल-पहल से भरपूर रहता ही है परन्तु आम दिनों में भी यहाँ भक्तो का ताँता लगा रहता है जो सुबह मंदिर खुलने से लेकर देर रान 11 बजे मंदिर के बंद होने तक लगा रहता है. आस-पास के लोगों द्वारा अक्सर मंदिर में भजन-कीर्तन और अन्य धार्मिक कार्य भी होते रहते हैं.

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Saurabh Soni

24jun👶 खावण खंडो (Foodie) 😋Blogger, Video Editor, Animal Lover & Part-Time Motivator 😜

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