सराय का अर्थ होता है ठहरने का स्थान, जो अक्सर परदेशी लोगों के लिए एक अस्थायी निवास होता है यानी बाहर से आने वाले लोग वहां रुक सके और विश्राम कर सके. मारवाड़ तो हमेशा से ही आवभगत और मान-मनुहार के लिए जाना जाता रहा है. यहाँ के लोगों की बोली और व्यवहार में एक अपनापन है जो किसी को भी मुग्ध कर देता है.
समय के साथ-साथ यहाँ के दरबारों(शासक) ने स्थापत्य कला के अमूल्य और ऐतिहासिक विरासतों तथा भवनों आदि का निर्माण करवाया था, जिनकी स्मृतियाँ आज भी मौजूद है.
इसी सोच को आधार रख कर सन् 1897 महाराजा जसवंत सिंह जी की द्वितीय रानी जाडेची जसरंग दे ने जसवंत सराय और राज भवन का निर्माण करवाया था. जो वर्तमान में जोधपुर रेलवे स्टेशन के सामने की तरफ स्थित है. जसवंत सराय को जाडेची राज विलास भी कहा जाता है.
घाटू के लाल पत्थरों से निर्मित इस भवन का प्रवेश द्वार बहुत ही सुन्दर, नाक्काशीयुक्त और कलात्मक पोल है. अन्दर की तरफ निचली मंजिल में 45 कमरे है जो उस समय यात्रियों के लिए निःशुल्क थे. लेकिन इनमें यात्रियों को तीन दिन से ज्यादा नहीं ठहराया जाता था. प्रथम मंजिल पर 6 कमरे थे जिनमें ठहरने का किराया लिया जाता था क्योंकि उनमें निचले कमरों से अधिक सुविधाएँ थी. इन कमरों में यात्रियों को 15 दिन से अधिक ठहरने की अनुमति नहीं होती थी. वर्तमान में यह सराय देवस्थान विभाग द्वारा संचालित किया जाता है.
जसवंत सराय के साथ-साथ उसके सामने ही राज-भवन का निर्माण भी करवाया गया था. इस भवन का क्षेत्रफल विशाल है. इसमें प्रवेश द्वार हेतु चार पोलें बनाई गयी थी. इस विशाल भवन के अन्दर 140 मकान और दुकानें बनाई गयी थी. जो अब किराये पर दे दी गयी है और वर्तमान में इसमें कुछ होटल्स भी संचालित किये जाते है.
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