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History of Santoshi Mata mandir – एक ऐसा स्थान जो प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर है, जहाँ प्राकृतिक हरियाली, सरोवर, पहाड़ियां और आध्यात्मिक वातावरण है, जो आस्था, श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है और मन को शांत करने वाला वातावरण है.
यह स्थान है मंडोर-मंडी के पीछे, लाल सागर के पास स्थित प्रकट संतोषी माता का मंदिर. जो सिर्फ जोधपुर या राजस्थान में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में प्रसिद्ध है. ऐसी मान्यता है कि माता स्वयं इस मंदिर में मूर्ति रूप में निवास करती हैं. इसलिए ये सभी संतोषी माता के मंदिरों में वास्तविक माना जाता है.
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कहते हैं लाल सागर की पहाड़ियों पर एक गुफा में संतोषी माता की मूर्ति प्रकट हुई थी और मूर्ति के ऊपर की चट्टान पर सिंह के प्राकृतिक पदचिन्ह भी स्थित है. इसलिए इसे प्रकट संतोषी माता कहा जाता है. यह घटना कब की है इसका कोई अनुमान नहीं है परन्तु लगभग 56 वर्ष पहले चांदपोल निवासी उदारामजी सांखला को माता ने दर्शन दिए थे, तब से भक्त उदाराम जी माता की सेवा में लग गये. उन्होंने ही उस निर्जन स्थान को मंदिर में परिवर्तित कर दिया और एक अखंडजोत का शुभारम्भ किया. धीरे धीरे उन्होंने धर्मशाला और अन्य मंदिरों का निर्माण भी करवाया ताकि माता के दर्शन के लिए आने वाले भक्तों को असुविधा न हो. धीरे धीरे यह मंदिर पुरे भारत में विख्यात हो गया.
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माता की मूर्ति के समीप ही एक प्राचीन कुंड है जो लगभग 15 फुट गहरा है. इस कुंड के पास ही बहुत प्राचीन हरा-भरा वट-वृक्ष है, जहाँ श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए मौली बाँधते हैं. उदाराम जी अपने परिवार-सहित मंदिर में रहने लगे और माता की सेवा और पूजा के साथ यहाँ आने वाले दर्शनार्थियों के लिए भी सुविधाजनक वातावरण का निर्माण करने लगे.
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हर साल नवरात्री के समय यहाँ मेला लगता है और भजन-कीर्तन से पूरा वतरण भक्तिमय हो जाता है. और हर शुक्रवार के दिन यहाँ भक्तो का अवागमन चलता रहता है. गुड़ और चने का प्रसाद माता को विशेष रूप भोग लगाया जाता है.
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