किसी भी प्रदेश या राज्य की अपनी संस्कृति, स्थापत्य, कला और विरासत होती है जो अपने आप में अलग और विशिष्ट होती है. इसी कला और संस्कृति को अलग-अलग राज्य और लोगों तक पहुंचाने के लिए आयोजन किया जाता है प्रदर्शनी या नुमाईश का. इस प्रदर्शनी के माध्यम से अपनी कला और संस्कृति का परिचय और आदान-प्रदान किया जाता है. मारवाड़ तो विशेष रूप से अपनी कला, संस्कृति और स्थापत्य के लिए पूरे विश्व में प्रसिध्द है.
इसी कला और संस्कृति को प्रदर्शित करने के लिए सन् 1909 में महाराजा सरदारसिंह जी ने सूरसागर में एक प्रदर्शनी लगवाई जिसे ‘इण्डस्ट्रीयल म्यूजियम’ कहा गया. आज यह सरदार संग्रहालय के नाम से जाना जाता है और सोजती गेट के उम्मेद उद्यान में स्थित है. इस संग्रहालय का सफ़र और इतिहास बहुत लम्बा है.
सन् 1909 में लार्ड किचनर के जोधपुर आगमन पर उन्हें मारवाड़ की कला और वस्तुओं को दिखाने के लिए तत्कालीन महाराजा सरदारसिंह जी ने मारवाड़ में बनी कलात्मक वस्तुओं को एकत्रित कर एक प्रदर्शनी लगाई. जिसका नाम रखा गया था ‘इण्डस्ट्रीयल म्यूजियम’.
सन् 1914 में महाराजा सुमेरसिंह जी ने इस म्यूजियम में प्राचीन और ऐतिहासिक वस्तुओं को शामिल किया और इसका नवीनीकरण करवाया और इसका नाम स्व. महाराजा सरदारसिंह जी के नाम से सरदार संग्रहालय रखा. कुछ समय बाद इसके साथ ही एक पुस्तकालय का निर्माण भी करवाया जिसे सुमेर पब्लिक लाइब्रेरी कहा जाता है. 1916 में इस संग्रहालय और पुस्तकालय को भारत सरकार द्वारा मान्यता प्रदान की गयी. उस समय यह म्यूजियम सोजती स्थित उगमसिंह जी के बंगले में स्थानांतरित की गयी थी.
सन् 1935 में महाराजा उम्मेदसिंह जी ने उम्मेद उद्यान के मध्य में एक नए भवन का निर्माण करवाया और 1936 में सरदार संग्रहालय को नए भवन में और सुमेर लाइब्रेरी को भी उम्मेद उद्यान में स्थानांतरित करवा दिया. यह नया भवन छितर और लाल घाटू के पत्थरों से बना है. इस भवन की कुल लागत 1,30,000 आई थी.
वर्तमान में इस संग्रहालय में हस्तकला की वस्तुएं, दुर्लभ प्राणियों के अवशेष, प्राचीन अस्त्र-शस्त्र, प्रतिमाएं, विभिन्न प्रकार और समय की मुद्राएँ और अन्य कई ऐतिहासिक और प्राचीन वस्तुएं रखी गयी है. वर्तमान में इस म्युजियम का टिकिट भारतीय सैलानियों(Indian Tourists) के लिए 20 रूपये है तथा विदेशी सैलानियों(Foreign Tourists) के लिए 100 रूपये निर्धारित है.
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