मारवाड़ में स्थापत्य कला का इतिहास बहुत प्राचीन रहा है. इस बात की सत्यता हम समय-समय पर मिले अवशेषों, स्मारकों, शिलालेखों आदि से जान सकते है. राजस्थान चूँकि एक उष्ण-कटिबंधीय क्षेत्र है अतः पानी की कमी के चलते यहाँ विभिन्न शासकों और अन्य प्रमुख व्यक्तियों द्वारा कुओं, तालाबों, बावडियों आदि का निर्माण किया जाता रहा है.
जोधपुर में कई प्राचीन बावड़ियां आज भी विद्यमान है जिनमें पानी की पर्याप्तता है और कुछ ऐसी भी है जो सूख चुकी है. इनमें से एक बावड़ी ऐसी भी है जिसे राजस्थान की सबसे प्राचीनतम् बावड़ी कहा जाता है. हालाँकि राजस्थान की सबसे प्राचीन बावड़ी जयपुर में स्थित थी जो सन् 684 ईं. में बनी थी लेकिन वह सुरक्षित नहीं रह सकी. इसलिए वर्तमान में उपस्थित बावड़ियों में जोधपुर की यह बावड़ी अब सबसे प्राचीन है.
सुमनोहरा की बावरी जोधपुर की प्रथम राजधानी रहे मंडोर में स्थित है. जिसे वर्तमान मंडोर रेलवे स्टेशन के सामने की पहाडियों पर चट्टान को काटकर बनाया गया था जिसकी आकृति अंग्रेजी के अक्षर L के सामान है. बावड़ी से प्राप्त शिलालेख से यह पता चलता है कि यह 685 ईं. में बनाई गयी थी. जिसका निर्माण चणाक के पुत्र माधू नामक व्यक्ति ने करवाया था. इसका पानी मीठा और स्वादिष्ट था इसलिए इसे “सुमनोहरा” नाम दिया गया था.
बावड़ी के पास मिले शिलालेख में कुछ श्लोक लिखे हैं जिसमें सर्वप्रथम भगवान शिव को नमस्कार किया गया है. उसके पश्चात वरुण देव और वामन देव की स्तुति है. तत्पश्चात् इसके निर्माता माधू के यश और गुणों का वर्णन है.
चूँकि यह बावड़ी चट्टान को काटकर बनाई गई है इसलिए इसे रॉक कट बावड़ी भी कहा जाता है. राजस्थान पर्यटन विभाग की ओर से चलने वाली शाही रेल पैलेस ऑन व्हील तथा राजस्थान रॉयल्स मंडोर रेलवे स्टेशन पर रूकती है और पर्यटकों को सबसे पहले इस बावड़ी के बारे में जानकारी दी जाती है. परन्तु देख-रेख के आभाव में यह भी अब निरंतर झर्झर होती जा रही है. इसे संरक्षित रखने के लिए इसके देखभाल और झीर्णोद्धार करने की अति-आवश्यकता है.
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