Ranisar & Padamsar Lake : History यह हमारे पूर्वजों की सूझबूझ और दूरदृष्टि का ही परिणाम है की उन्होंने अपने समय में ऐसी व्यवस्थाएँ की जिनका सुखद परिणाम आज की पीढ़ी को भी मिल रहा है. लेकिन क्या हम भी वैसी सोच रखते हैं ? क्या हम भी अपने आगे की पीढ़ियों के लिए उन व्यवस्थाओं को संभाल सकते हैं ? अगर हम नयी व्यवस्थाएँ नहीं कर सकते तो कम से कम पुरानी को तो संभालना चाहिये और उनकी सुरक्षा करनी चाहिए.
यह तो सभी जानते है कि राजस्थान एक ऊष्णकटिबंधीय प्रदेश है जहाँ अधिकाँश जल की कमी पायी जाती है. अतः इस कमी को पूरा करने के लिए समय-समय पर कुएं, बावड़ियाँ और वर्षा के जल को एकत्रित करने के लिए तालाबों और झीलों का निर्माण करवाया जाता था. इन्हीं जलस्त्रोतों से जल की आपूर्ति की जाती थी.
जब जोधपुर की स्थापना हुई तब दुर्ग निर्माण के साथ ही जल संग्रह के लिए एक तालाब का निर्माण भी करवाया गया था जिसे राव जोधा की रानी हाडी जसमादे ने सन् 1459 में करवाया था और इसीलिये इसका नाम रानीसर पड़ा. उस समय इसके निर्माण में 20,251 रूपये व्यय किये गये थे. इस तालाब को प्राकृतिक पहाड़ियों के मध्य में बनवाया गया था अतः पहाड़ियों से रिस कर पानी इस तालाब में इकठ्ठा होता था. एक दूरदर्शी सोच के रखकर इस तालाब का निर्माण करवाया गया था जिसका परिणाम आज भी जोधपुरवासियों के लिए सुखद रहा है. तालाब में पांच बेरियाँ भी खोदी गयी थी, जिनमें तालाब का पानी रिसता रहता है जो स्वच्छ और आवश्यकता होने पर बहुत काम आता है. तालाब का पानी सूख जाने की स्थिति में इन बेरियों में एकत्रित पानी काम आ सकता था.
1555 ईं. में राव मालदेव ने दुर्ग के परकोटे की दिवार को बढ़ाकर रानीसर तालाब को दुर्ग के भीतर समाहित कर लिया था. महाराजा तख्तसिंह ने अपने समय में रानीसर के परकोटे की दीवार को ऊंचा करके लगभग 67 फीट कर दी, जिससे इसकी भराव क्षमता बढ़ गयी. इसके अतिरिक्त विभिन्न नहरों को नालों की सहायता से तालब से जोड़ दिया गया था ताकि अधिक से अधिक जल को संगृहीत किया जा सके.
रानीसर के पास ही एक और तालाब का निर्माण करवाया गया था, ताकि रानीसर भरने के बाद जो पानी बाहर निकले उसे भी संगृहीत किया जाए. इसके नाम के सन्दर्भ में दो बातें प्रचलित है.
एक तो ये की जब राव जोधा मेवाड़ से यहाँ आये थे तो अपने साथ सेठ पदमशाह को साथ लेकर आये थे और उनसे प्राप्त धन से इस तालाब का निर्माण करवाया था इसलिए इसका नाम पदमसर रखा गया था. दूसरी बात ये है कि राव गंगा की रानी सिसोदणी जी (जिनको पीहर में पद्मावती कहा जाता था) ने इस तालाब का निर्माण कार्य पूरा करवाया था इसलिए इसका नाम पदमसर रखा गया.
रानीसर-पदमसर तालाब के किनारों पर जोधपुर शासकों और उनकी रानियों ने अपने-अपने समय में विभिन्न मंदिरों, छतरियों और घाट का निर्माण भी करवाया. रानीसर-पदमसर का पानी किले में रहने वाले लोगों के लिए काम में लिया जाता था. किले तक पानी पहुँचाने के लिए पहले अरहट काम में लिया जाता था. उसके बाद जब भाप के इंजन का आविष्कार हुआ तब उसकी सहायता से पानी पहुँचाया जाता था. समय के साथ-साथ परिवर्तन भी होते गए और अब पाणी की मोटरों का उपयोग किया जाता है. महाराजा तख्तसिंह जी ने अपने समय में इस तालाब में कई सुधार-कार्य करवाये और 1858 ईं. में रानीसर-पदमसर के पानी को जोधपुर की आम जनता के उपयोग में लेने की अनुमति दे दी थी.
रानीसर में ओटा हुआ पानी पदमसर में गिरता था और जब पदमसर भी ओटा हो जाता तब इसे अच्छी बारिश का संकेत माना जाता था. ये मान्यता जोधपुरवासियों में आज भी यथावत मानी जाती है. लेकिन आज आवश्यकता है हमें भी उस दूरदृष्टि सोच की जिससे सबका भला हो.
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