न्यायालय को “न्याय का मंदिर” कहा जाता है क्योंकि यहाँ अन्याय से पीड़ित कितने ही लोगों के साथ न्याय करके अपराधी को सजा देने की कार्यवाही की जाती है. प्राचीन समय और रियासत काल में न्याय-अन्याय का फैसला राज-दरबार में राजा-महाराजाओं के द्वारा किया जाता था क्योंकि उस समय शासक ही न्यायाधीश होता था. जैसे-जैसे समय बदलता गया व्यवस्थाएं भी बदलती गयी. आज न्याय-अन्याय की व्यवस्था न्यायालय के रूप में होती है जिसका प्रमुख न्यायाधीश होता है और सभी पक्षों की सुनवाई के बाद फैसले भी वही सुनाता है.
इसी आधुनिक व्यवस्था में शामिल है एक ऐतिहासिक स्मारक और मारवाड़ स्थापत्य कला के रूप में हमेशा यादगार रहने वाला “कचहरी भवन” जो लगभग 60 सालों तक राजस्थान मुख्य न्यायालय का स्थान भी रहा है.
भवन का निर्माण राजप्रमुख “सर प्रतापसिंह जी” के निर्देशन में सन् 1886 में महाराजा “जसवंतसिंह जी द्वितीय” ने आरम्भ करवाया था. जसवंतसिंह जी द्वितीय की मृत्यु के बाद महाराजा “सरदार सिंह जी” ने 1897 में निर्माणकार्य पूरा करवाया. महाराजा सर प्रतापसिंह जी का इसमें अतुल्य योगदान था इसलिए उनकी मृत्यु के बाद सन् 1925 में कचहरी भवन के सामने उनकी भव्य मूर्ति स्थापित की गयी.
इस भवन का निर्माण इंग्लेंड की महारानी विक्टोरिया के राज्य में 50 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में गोल्डन जुबली के रूप में बनवाया गया था इसलिए इसे “जुबली कोर्ट” भी कहते हैं. भवन में 52 दफ्तर बने थे इसलिए इसे “बावन कचहरीयां” भी कहा जाता है. भवन का निर्माण उस समय के मशहूर कारीगर मो. गजधर सिलावट इस्हाक ने किया था जिसमें कुल 4,50,000 रूपये खर्च हुए थे.
सन् 1936 में महाराजा उम्मेद सिंह जी ने कचहरी परिसर में एक और भवन का निर्माण करवाया था इसे भी जुबली कोर्ट कहते है. इस भवन का निर्माण इंग्लैंड के राजा और रानी की सिल्वर जुबली के उपलक्ष में करवाया गया था और इसे मो. गजधर इस्हाक़ ने मात्र 9 माह में ही निर्मित कर दिया था. उनके काम से प्रभावित होकर महाराजा उम्मेद सिंह जी ने उन्हें चाँदी का 2 फीट का गज और जरी का सफा देकर सम्मानित किया था.
सन् 1949 में इसी कचहरी भवन में राजस्थान उच्च न्यायालय का उदघाटन जयपुर के राजप्रमुख महाराजा सवाई मानसिंह ने किया था. करीब 60 वर्षों तक इस भवन में न्यायिक कार्य होते रहे.
हाल ही सन् 2019 में राजस्थान उच्च न्यायालय को डांगियावास बाईपास स्थित नए भवन में स्थानांतरित कर दिया गया. इस भवन को भारत के संसद भवन की तर्ज पर तैयार किया गया है. यह भवन आधुनिक तकनीकों से युक्त है जिसमें कुल 22 न्यायिक कक्ष है. भारत ही नहीं बल्कि पूरे एशिया में यह एकमात्र ऐसा भवन है जो सबसे आधुनिक और नवीन तकनीकों के साथ निर्मित है.
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