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Who is called “Father of Aviation” in Jodhpur? क्या है जोधपुर हवाई अड्डे का इतिहास ? जिसने द्वितीय विश्व युद्ध में निभाई थी अहम भूमिका – Jodhpur Airport History

Who is called “Father of Aviation” in Jodhpur? क्या है जोधपुर हवाई अड्डे का इतिहास ? जिसने द्वितीय विश्व युद्ध में निभाई थी अहम भूमिका – Jodhpur Airport History
Saurabh Soni

मारवाड़ के इतिहास की ख़ास बात यह रही है की यहाँ के अधिकतर शासकों ने हमेशा समय के साथ परिवर्तन को महत्त्व दिया है तथा आधुनिकीकरण और नवीनीकरण को अपनाया हैं. इसी श्रेणी में सबसे प्रमुख नाम आता है महाराजा उम्मेदसिंह जी का. जिन्हें आधुनिक जोधपुर का निर्माता भी कहा जाता है. उनके शासनकाल के दौरान विश्व में नवीन तकनीकों का आगमन हो चुका था और वे उन तकनीकों का उपयोग करने में कभी पीछे नहीं रहे. हालाँकि उनके पहले के शासक भी नवीनीकरण को प्रोत्साहन देते आये थे. जिसमें महाराजा सर प्रतापसिंह जी का नाम भी उल्लेखनीय है. अपने समय में उन्होंने भी कई आधुनिक भवनों, इमारतों आदि का निर्माण करवाया था.

सन् 1903, यह वही वर्ष है जब महाराजा उम्मेद सिंह जी का जन्म हुआ था और इसी वर्ष दुनिया में पहले नियंत्रित, निरंतर और संचालित वायुयान ने उड़ान भरी थी. हालाँकि अगर हम बात करें हमारे पौराणिक समय की, तो रामायण काल के अनुसार उस समय पुष्पक विमान जैसे उड्डयन का वर्णन मिलता है परन्तु आधुनिक काल की बात करें तो आधुनिक विमानन की बात ही मानी जाती है. शायद यह भी कारण रहा था कि महाराजा उम्मेद सिंह जी को विमान संचालन में इतनी रूचि थी. इसलिए उन्हें जोधपुर में उड्डयन का जनक(Father of Aviation) भी कहा जाता है. महाराजा उम्मेद सिंह जी दूरदर्शी और आधुनिक विचारों वाले एक सफल शासक थे.

महाराजा उम्मेद सिंह जी ने उम्मेद भवन पैलेस के पास रातानाडा में जोधपुर हवाई अड्डे का निर्माण सन् 1924-25 में शुरू करवाया था जो 1933 तक पूरी तरह से बनकर तैयार हुआ. उस समय करीब 1 लाख 30 हजार रूपये का व्यय हुआ था. 1931 में उन्होंने फ्लाईंग क्लब की शुरुआत की. सन् 1933 तक उन्होंने मारवाड़ में 15 हवाई स्टेशनों का निर्माण करवाया था और जोधपुर हवाई अड्डे पर बिजली और लाईट की सुविधा, कण्ट्रोल टॉवर, पेट्रोल-स्टोर और दो रनवे भी बनवाये. एक रनवे आमजन के लिए और दूसरा रनवे महाराजा के प्राइवेट हवाई जहाज के लिए. समय-समय पर महाराजा उम्मेदसिंह जी हवाई अड्डे पर आवश्यक और आधुनिक निर्माण-कार्य करवाते रहे. उन्होंने असिस्टेंट एयरोड्रोम ऑफिसर के लिए भी एक भवन का निर्माण भी करवाया था.

जोधपुर हवाई अड्डे की सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही है की द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सन् 1938-39 में 1000 से ज्यादा विमानों ने यहाँ से उड़ान भरी थी. उस समय यह हवाई अड्डा रॉयल एयर फॉर्स के लिए बहुत सहायक रहा. इसके आलावा 1999 के करगिल युद्ध के दौरान भी जोधपुर एयर बेस सक्रीय रूप से प्रभावी रहा था.

महाराजा उम्मेद सिंह जी खुद भी विमान संचालन का ज्ञान रखते थे और उनके पास 3 निजी विमान भी थे मानो स्पोर्ट, क्रोम्पर स्वीट और प्रसीवलगल. चौथा विमान लियोपर्ड मोथ, महाराजा को एक सेठ भागचंद सोनी ने उपहार स्वरूप दिया था.

महाराजा उम्मेद सिंह जी ने जोधपुर हवाई अड्डे को अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने के लिए बहुत प्रयास किये थे पर ऐसा हो नहीं सका. लेकिन उन्होंने जोधपुर की आम जनता के लिए एक फ्लाईंग क्लब की स्थापना की ताकि लोग जोधपुर शहर में हवाई भ्रमण का आनंद ले सके और शहर को एक अलग नज़रिए से देख सके. आम लोगों को हवाई भ्रमण के लिए 10 रूपये किराया देना होता था. जोधपुर हवाई अड्डे पर हर दिन 3 एयरवेज लैंड करते थे. एयर फ़्रांस, K.L.M. एयर लाइंस और इंडियन ट्रांसकोन्टिनेन्टल एयरवेज.

वर्तमान में जोधपुर हवाई अड्डा एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया द्वारा संचालित किया जाता है. आज जोधपुर हवाई अड्डे पर कैफेटेरिया, प्री-पेड टैक्सी सर्विस, प्लगेज ट्रोलीस, ऑन-कॉल मेडिकल सुविधाएं तथा शारीरिक रूप से अक्षम यात्रियों के इलिए व्हीलचेयर आदि कई सुविधाएँ उपलब्ध है.

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Saurabh Soni

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