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Who is Gora Dhay ? कौन है गोरां धाय ? क्या है इनका जोधपुर से नाता ? इतिहास के पन्नों में कहाँ छुपा है इनका नाम – History of Jodhpur

Who is Gora Dhay ? कौन है गोरां धाय ? क्या है इनका जोधपुर से नाता ? इतिहास के पन्नों में कहाँ छुपा है इनका नाम – History of Jodhpur
Saurabh Soni

राजस्थान का इतिहास शुरू से ही गौरवशाली रहा है. चाहे मातृभूमि की सेवा और रक्षा हो या स्वामिभक्ति, दोनों ही बातों में यहाँ की शासकों और स्वामिभक्तों की यश-गाथायें अमर रही है.

       पन्ना धाय का बलिदान तो जग-प्रसिद्ध है जिन्होंने अपने पुत्र का बलिदान देकर मेवाड़ के राजकुंवर उदयसिंह के प्राण बचाए थे. पन्ना धाय ने कुंवर उदयसिंह का लालन-पालन अपने पुत्र के साथ ही किया था इसलिए वो धाय माँ कहलाई थी. पन्ना धाय की तरह ही एक और घटना मारवाड़ में भी हुई थी और पन्ना धाय की तरह एक और धाय ने राजकुंवर को बचाने के लिए अपने पुत्र का बलिदान कर दिया.

       सन् 1679 में महाराजा अजितसिंह का जन्म हुआ. इनके जन्म से पूर्व ही महाराज जसवंत सिंह की मृत्यु हो गयी थी. उस समय मारवाड़ का और कोई उत्तराधिकारी नहीं होने की वजह से दिल्ली के शासक औरंगजेब ने कब्जा कर लिया था. जब अजीतसिंह का जन्म हुआ तब राठौड़ सम्प्रदाय पुनः मारवाड़ का शासन और पद लेने के लिए औरंगजेब के पास गए.तब औरंगजेब ने शर्त रखी की अगर युवराज अजीतसिंह का लालन-पालन दिल्ली में उनके सामने हो तभी वो ऐसा करेंगे. क्योंकि औरंगजेब की मंशा अजित सिंह को मुसलमान बनाने की थी. परन्तु महाराजा जसवंत सिंह जी के स्वामिभक्त रहे वीर दुर्गादास राठौड़ और अन्य राजभक्तों को यह मान्य नहीं था अतः उन्होंने अजित सिंह को गुप्त तरीके से औरंगजेब के चुंगल से बचने की योजना बनाई. तब जोधपुर के मंडोर निवासी मनोहर गहलोत की पत्नी बघेली रानी जिन्हें गोरां धाय भी कहा जाता था, ने एक सफाई कर्मी का वेश बनाकर अजीतसिंह को अपने पुत्र से बदल कर उन्हें दिल्ली की सीमा से सुरक्षित बाहर निकाल लिया.

20 सालों तक उनकी परवरिश गोरां धाय ने अपने पुत्र के सामान ही की. उनकी स्वामिभक्ति और उनका यह बलिदान स्मरणीय बन गया और इसके साथ ही युवराज अजीतसिंह जी को बचाने के लिए अन्य राठौड़ों का बलिदान आज भी याद रखा जाता है. बीस साल बाद मौका पाकर वीर दुर्गादास राठौड़ और अन्य सरदारों ने पुन: जोधपुर पर अधिकार कर लिया और अजीतसिंह जी को राजगद्दी पर विराजमान किया. 1704 ई. में गोरां धाय की मृत्यु हो गयी.

सन् 1712 में महाराजा अजितसिंह जी ने गोरां धाय के बलिदान और उनकी स्मृति में वर्तमान उम्मेद स्टेडियम के सामने रेलवे लाईन के पास छः खम्भों की एक छतरी का निर्माण करवाया. ताकि आने वाली पीढियां उनके बलिदान और स्वामिभक्ति के बारे में स्मरण करते रहें. आज भी समय समय पर छतरी का जीर्णोद्धार किया जाता रहता है.

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