मेरा नाम प्रसन्नपुरी गोस्वामी है और मैं मेहरानगढ़ किले की तलहटी मैं रहता हु !! मुझे बचपन से ही पेड़ पोधो से लगाव था, बचपन मैं मेरे माता पिता मुझे मंडोर, पब्लिक पार्क ले जाया करते थे, वहा पर फूलो, पेड़ पोधो को देख कर बड़ा प्रभावित होता था ! जैसे जैसे मेरी उम्र बदती गयी मेरा पेड़ पोधो के प्रति लगाव बढता गया ! मेरे अद्यापक करियर मैं मेरी जिन स्कूलो पोस्टिंग हुई मैंने वहा पेड़ पोधे लगाये और स्कूल को हरा भरा बनाया !!
जब मैं छोटा था तो मेरे घर से ये मेहरानगढ़ की पहाड़िया सुखी ,वीरान नज़र आती थी मेरी हमेशा से कल्पना थी , क्यों ना इन पहाडियों पर पेड़ पोधे लग जाये और ये सुंदर हरी भरी हो उठे !! ये कल्पना का एक स्वपन था जो काफी लम्बे समय तक दबा रहा, 1987 मैं मेरा transfer महिला बाग सीनियर हायर सेकेंडरी स्कूल जोधपुर मैं हुआ, स्कूल के बाद का मुझे काफी समय मिल जाता था तो मैंने सोचा क्यों ना इस खाली समय का इस्तमाल किया जाये और इन मेहरानगढ़ की पहाड़ियों पर वृक्षारोपण किया जाये !! मैंने सबसे पहला पोधा जसवंत थडा और मेहरानगढ़ को जाने वाला जो रास्ता है उसके तिराहे के मोड़ पर लगाया !! पानी की बहुत समस्या थी तो मैं प्याऊ से पानी ला कर पिलाता तो कभी देवकुंड से तो कभी रसोड़े के तालाब से !! जैसे जैसे पोधा बढता गया मेरा होंसला भी बढता गया !!
एक बार की बात है मैं किले रोड पर पोधे लगा रहा था, तो वंहा से महाराजा गज सिंह जी गुजरे तो उन्हें देखा की ये आदमी यंहा क्या कर रहा है , उस समय के मेहरानगढ़ के तत्कालीन निर्देशक नाहर सिंह जी जसोल मेरा पास आये और पूछा क्या कर रहे हो यंहा , उसके बाद मेहरानगढ़ ट्रस्ट और गज सिंहजी ने मेरी बहुत सहायता की !! उसके साथ साथ, जिला परिषद्, नगर निगम और वन विभाग ने मेरी बहुत सहायता की !! इस कारन मेहरानगढ़ के आस पास के १५ हेक्टर के area मैं आज हजारों पेड लगे है !! आज यंहा फूल, फल औषधिओ और छायादार पेड़ है, जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना है !
ये सब तो मैंने आपको सब अच्छा अच्छा बताया, ऐसे कामो मैं बहुत कठिनाई भी आती है और आपका मन करता है की आपको ये काम छोड़ देना चाहिए || एक बार की बात है मेरा principal का promotion जालोर के अंदर हेमागुडा गाँव मैं हो गया था, मेरा बड़ा लड़का प्रमोद पूरी जो 28 साल का था , वो भी पोधो की देखभाल करता था, उस दिन मैं उसे मना करके गया था की पोधो को दवाई मत छिडकना उसे दवाई छिडकनी आती नहीं थी, मेरी अनुपस्तिथि मैं उसने दवाई छिडकी और उसके Against खड़ा हो गया और दवाई उसके नाक मैं जाती रही और उसकी death हो गयी, एक बार तो इस घटना ने मुझे भीतर से तोड़ दिया था, उसके बाद मैं संभला और खुद से कहा की तेरा एक बच्चा गया तो क्या हो गया तूने जो ये हजारों बचे लगाये है इनका का को ध्यान रखेगा, और मैं एक बार फिर इसमें लग गया !!
मेरा तो ऐसा विश्वास है की 2040 -2050 तक तो ऐसी स्थिति आ जाएगी की लोग कमर के पीछे oxygen का cylender लेकर चलाना पड़ेगा, मेरा जीवन का उद्देश्य ही यही है की हम सब ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाये और हमरी आने वाली जनरेशन को शुद्ध हवा का तोफा दे !!
प्रसन्ना पुरीजी से हम बहुत कुछ सिख सकते है, जोधपुर की ऐसी और कहानिया आपको मिलेगी हमारी website पर 🙏
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