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History of Jodhpur Central Jail | क्या है केंद्रीय कारागृह-जोधपुर का अनसुना इतिहास ?

History of Jodhpur Central Jail | क्या है केंद्रीय कारागृह-जोधपुर का अनसुना इतिहास ?
Saurabh Soni

जेल का नाम सुनते ही कोई भी साधारण आदमी सोच में पड़ जायेगा कि अगर जाने-अनजाने में जेल की हवा खानी पड़ गयी तो जिन्दगी भर का एक कलंक रह जायेगा, इसलिए साधारण और सीधे लोग हमेशा से ही जेल जाने से कतराते रहे है चाहे किसी की रिपोर्ट दर्ज करवानी हो या किसी की मदद करनी हो. वो इन कागजी कार्यवाहियों में उलझना नहीं चाहते ताकि उनकी जिन्दगी का सफ़र जेल के चक्कर लगाने में ना बीते.

जेल का निर्माण इसलिए किया जाता है ताकि अपराधियों को सजा दी जा सके और उनको सुधारा जा सके ताकि समाज में अपराध खत्म हो जाये या कम से कम हो. इसीलिए हर राज्य में पुलिस स्टेशन और जेल की व्यवस्था होती है. बंदीगृह, कारागृह, पिंजरा आदि नाम प्रमुखता से जेल के लिए प्रयुक्त किये जाते है.

सन् 1894 में महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय ने जोधपुर में जेल का निर्माण करवाया जो आज “सेंट्रल जेल” के नाम से पूरे भारत में विख्यात है. पहले कैदियों को फतेहपोल के बाहर स्थित कोतवाली में रखा जाता था लेकिन वहां सही व्यवस्था नहीं होने के कारण जेल के लिए एक नए भवन का निर्माण किया गया. सेंट्रल जेल मोहनपुरा पुलिया और बिजलीघर के पास स्थित है. इस जेल को बनाने में उस समय करीब 1 लाख 10 हजार रूपये खर्च हुए थे. जिसमें मुख्य बैरक, वाचिंग टावर, महिलाओं के लिए अलग दीवार, कमरे, स्नानघर, रसोई और एक गोदाम आदि शामिल है.

       रियासत काल में कैदियों को सिर्फ कैद करके नहीं रखा जाता था बल्कि उनसे विभिन्न प्रकार के कार्य भी करवाये जाते थे और कैदियों द्वारा अलग-अलग तरह की वस्तुएं बनाई जाती थी. जैसे रेशमी और सूती कपड़े, दरियां, रस्सियाँ, तौलिये, बेंत की कुर्सियां आदि जेल के कैदियों द्वारा बनाई जाती थी. जोधपुर जेल में बनी वस्तुएं सिर्फ जोधपुर में ही नहीं बल्कि अन्य रियासतों और ब्रिटिश-भारत में भी बहुत प्रसिद्ध हो गयी थी. जोधपुर की दरी तो पुरे विश्व में प्रसिद्ध थी और बाहर विदेशों की प्रदर्शनियों में भी जोधपुर में बनी वस्तुओं की लुमाईश होती थी. यह जेल कैदियों के जीवन को सुधारने में काफी सफल रही थी. इससे कैदियों को अपने हुनर को पहचानने में मदद मिली और उन्हें अपनी अपराधिक मानसिकता को सुधारने का मौका मिला.

जोधपुर स्थित सेन्ट्रल जेल आज पुरे भारत में इसलिए भी विख्यात है क्यों कि हिन्दी फिल्म जगत के बहुचर्चित सितारे सलमान खान इस जेल में सजा काट चुके है और आम लोगों के चहेते आसाराम बापू इस जेल में सजा काट रहे हैं.

अगर आज की बात करें तो अधिकतर कैदियों का जीवन सजा काटने के बाद भी वैसा का वैसा ही रहता है क्योंकि जेलों में इस तरह की गतिविधियाँ ख़त्म होती जा रही है वहां उनको सिर्फ कैदी बनाकर रख दिया जाता है. उनके जीवन में सुधार लाने या उनके बुरे विचारों को बदलने के लिए प्रयास ही नहीं किये जाते. इसका दूसरा कारण लोगों में बढती अपराधिक प्रवृति और नैतिक सिक्षा का अभाव भी है. जेल से छूटने के बाद भी उनकी अपराधिक गतिविधियों और सोच में बदलाव ही नहीं आता इसलिए वो पुनः वही गलतियाँ दोहराते है.

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